हम दुनिया मे किस लिए आये ये हम नहीं जानते पर इतना जरूर है की हमें यहां कुछ सीखना है, कुछ जानना है। पर क्या हम सिख रहे हैं? सच कहें तो बहुत कम लोग हैं जो अपने जिंदगी से सिखते है, इस दुनिया को जानते हैं। ज्यादा तर लोग तो बस इस दुनिया की बनाई धारना में ही जी रहे हैं।
हमारा जब जन्म होता है तब हम बिल्कुल खाली होते हैं और जब मरते हैं तो हमने जिंदगी से काफी कुछ सिखा होता है। हमारी कुछ धारणा ये बनी होती है, जो हमे ज्यादातर हमारे माता पिता, समाज, परिस्थीतीया, धर्म ने दी होती है। असल में ये सारी उनकी की धारणा ये होती है और हम उसे फाॅलो करते हुए जी रहे होते हैं। पर व्यक्तिगत रूप से हमने क्या सिखा ये
हमें पता नही। हम तो बस अपने ही मस्ती में जी रहे हैं।
हमें पता नही। हम तो बस अपने ही मस्ती में जी रहे हैं।
जहां कहीं गलत हुआ तो हम उसे गलत मान लेते हैं और कहीं सही हुआ तो हम उसे सही समझ लेते। पर सही को सही बोलना और गलत को गलत यह हमे दुनिया ने ही सिखाया होता है। क्या हमने चीजों को अपनी नज़र से देखना सिखा है। क्या हमारे पास दुनिया को देखने की दृष्टी है? इसका उत्तर बहुत कम लोग दे सकते हैं, पर ज्यादा तर लोग इसका उत्तर नही दे सकते। क्युकी वह उतने जागृत नहीं जितने कुछ ही लोग होते हैं। यह लोग प्रकृति से जुड़े लोग होते हैं।
हम भी तो प्रकृति का ही हिस्सा है, पर हम कभी प्रकृती से जुड नहीं पाते। प्रकृति शुरू से ही हमें सिखा रही है, की आगे कैसे बढ़ना हैं, कठीन परिस्थितीयो मे जिना कैसे है, अपना लक्ष चुनकर उसपर कायम रहकर उसे कैसे हासिल करना है, सब प्रकृति किसी ना किसी रूप मे हमें सिखाती है। जैसे की एक नदी पर्वतो से निकलकर आखिर सागर में मिल जाती है, वह हमें सिखाती है की, हम कहीं भी जन्म ले पर मिलना हमें एकही जगह है। पतझड़ के मौसम में कुछ पेड़ अपनी सारी पत्तीयां छोड कर पर्णहिन हो जाते हैं और कुछ समय बाद वे फिर से हरे भरे होकर वातावरण को आल्हादीत कर देते हैं। वह हमें सिखाते हैं की, समय समय पर हमें भी बदल जाना चाहीए और नया रूप धारण कर लेना चाहिए।
इन सब का एक लक्ष है और वह लक्ष पुरा कर रहे हैं। हमारा भी एक लक्ष है जिसे हम जाने अनजाने पुरा कर रहे हैं। एक पेड़ जिंदगी भर हमें आक्सिजन देता है, छांव देता है पर यह उसका लक्ष नहीं। उसका लक्ष कुछ और है। वह हमारी धरती का वातावरण बनाये रखने में मदद करता है। सभी जानते है की जंगल कितने जरूरी है। हम उनपर निर्भर है, उनके बिना हम जी नहीं सकते।
प्रकृति हमें बनाती हैं और मिटा भी देती है, पर क्यु? क्युकी वह इस दुनिया को कुछ नया देना चाहती है। पीढ़ी दर पीढ़ी वह हमारे अंदर कुछ अच्छे गुणों का निर्माण करती है, विकास करती है और एक नयी पीढ़ी को जन्म देती है। यह प्रकृति की दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश है जो वह लगातार कर रही है। इसी के कारण आज जो दुनिया हम देखत रहे हैं वह पहले के मुकाबले कहीं अधीक बेहतर है और बेहतर बनाने का यह सिलसिला लगातार चल रहा है। हम भी अगर प्रकृती से कुछ सिख सखे तो अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं, अपने लक्ष को पा सकते हैं।
इसके लिए हमें खुद की खोज करनी होगी..जब हम खुद को खोजेंगे तो हम खुदको बेहतर रूपसे जान पायेंगे की हम जितना सोचते है उससे काफी बडा हमारा लक्ष हैं। हम युही इस धरती पर नहीं है। पर हम अपने आप में ही इतने उलझ जाते हैं की उस लक्ष तक कभी पहोच ही पाते और हम खत्म हो जाते हैं। हमे प्रकृति के साथ जुड़ना होगा, वह हमारे अंदर और बाहर दोनों जगह मौजूद हैं। वह जरूर हमें हमारे लक्ष तक पहुंच ने में हमारी मदद करेगी, हमें बस उसके साथ रहना है और उससे सिखते रहना है।
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