हमारा मन नहीं जानता हम बाहर क्या देख रहे हैं। जब हम कोई चीज़ के बारे में बोलते हैं तब वह समझ जाता है और वैसी ही प्रतिक्रिया देता है, वैसी ही भावना हमारे मन में उठती है।
हम बाहर जो भी है वह मन का ही प्रती रुप है। मन ही हमें बनाता है, हमारी सोच से, हमारे विचारोंसे वह हमारा निर्माण करता है। मन एक जमीन की तरह होता है और विचार बीज..... इसलिए मन की जमीन पे जो भी विचार (बीज) डाले जाये वह उगेंगे और उसका वृक्ष भी बनेगा और जब बीज वृक्ष बनता है तब उसे काटना मुश्किल होता है। अगर वृक्ष को काटा भी जाएं तब भी वह फिर से बनेगा, क्युकी उसकी जड़ें अभी भी जमीन मे गहराई तक धसी हुई है और जब तक जड़ें रहेंगी पेड़ रहेगा।
हम उस पेड़ की तरह ही है। हम बाहर जैसे दिख रहे हैं असल में अंदर हम वैसे है इसलिए वैसे दिखते हैं। इस रूप को बदलना मुश्किल हो जाता है। क्युकी यह रूप लगातार बनता आ रहा है और इसे एक झटके मे बदलना बड़ा कठीन होता है। क्युकी एक जैसी चीजें हम लगातार करतें आ रहे हैं, मन हमे उसे युही बदलने नहीं देगा। बड़ा साहस लगता है , मन को बदलना आसान नहीं। बड़े-बड़े ऋषी मुनी, बड़े-बड़े विद्वान जिस मन के चंगुल से छूट ना पाये फिर हम तो सामान्य से लोग है... हमे तो वह आरामसे उल्लू बना देगा और हम समझ भी नहीं पायेंगे।
मन को देखना
मन की उलझने
जब भी हम मन की तरफ देखने की कोशिश करतें हैं वह हमें किसी ना किसी काम में उलझा देगा। कुछ नया करने की कोशीश करेंगे वह हमें उसे बोरींग बतायेगा। मन कभी-भी अपना कम्फर्ट झोन नहीं छोड़ना चाहता, उसे उसी में मजा आता है। उसने इर्द-गिर्द एक दायरा (भ्रम) बनाया हुआ होता है और उसी दायरे मे रहना उसे पसंद है। ना वह उसे तोड़ता है नाही किसीको तोड़ने देता है।
मन का भ्रम तोड़ना है तो मन को समझना होगा। मन जब भी अपने इर्द-गिर्द एक लाईन खिचता है तो वह उसके पार देखता नहीं, वह देखना ही नहीं चाहता। एकबार जब उसकी धारणा बन गई तो वह उसी में जिने लगता है। उस दायरे के बाहर एक दुनिया है यह वह देखता ही नही। उसे बदलना है तो हमें अपनी आदतें बदलनी होगी
क्या करें
शुरू शुरू में मुश्कील है पर जब भी हम अपने आदते बदलने लगते है मन को हमें रिस्पॉन्स देना ही पड़ता है, क्युकी वह हमारा ही प्रती रूप है, हम जो भी करेंगे उसे भी वह करना ही पड़ता है और एक बार जब उसे इसकी आदत लग जाती है फिर वह पुरानी आदतें छोड़ नयी आदत अपना लेता है और उसी के हिसाब से काम करता है। वैसे उसे नयी आदतें पसंद नहीं आती पर एक बार नयी आदत लग जाये तो वह उसे छोडता नहीं।
मन अच्छे बुरे में भेद नहीं करता, वह अच्छे को भी स्वीकार करता है और बुरे को भी, असल मे उसे तो बस मजा चाहीए होता है और जहां भी उसे यह मजा मिलता है वह वहीं रम जाता है। सच कहें तो हमारी सोच ही ऐसी है की हम अच्छाई से ज्यादा बुराई की तरफ जाते हैं, हम अच्छी आदतें कभी खुदको लगाते ही नहीं इसलिए मन हमेशा अपनी मनमानी करता रहता है। मन तो अपनी आदतों को दोहराता रहता है और हम परेशान होते रहते। पर ये आदतें भी तो हमने ही उसे लगा रखी है और हम चाहे तो इसे बदल भी सकते हैं।
कैसे बदलें
मन की एक बात है की वह जल्दी बदलाव को स्विकार नहीं करता, वह पुरानी चीजों पर ही चलना पसंद करता है और बदलने की कोशीश करे तो बहाने बनाने की को शीश करता है, पर हम लगातार वह चीजें करते रहे जो वह नहीं चाहता, धिरे धिरे फिर वह उसे स्विकार करता है और एक बार जब उसने इसे स्विकार कर लिया फिर वह उसे ही पकड़ के रखता और आदत बना लेता है, इसलिए कोई भी चीज अगर हम बार बार दोहराते हैं वह हमारे मन में बैठ जाती है और मन उसी के हिसाब से फिर बर्ताव करने लगता है। मन को अच्छी आदतें लगाये....मन आपको कहां से कहां पहुंचा देगा..नहीं तो वह हमें खड्डे में डाल देगा।
इसलिए मन को समझना शुरू करो, सारे सवालो के जवाब उसके पास है, वह सब जानता है। मन को समझना है तो उसपर ध्यान देना होगा, हमारी आदतों को देखना होगा और उसमें बदलाव लाना होगा, तभी चीजे बदलने लगेगी।
जब तक अंदर हम बदलाव नहीं लाते, बाहर भी कुछ नहीं बदलता।
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