मनुष्य के जीवन में जो सबसे अद्भुत और चमत्कारी शक्ति है, वह है—उसके विचार। विचार किसी अमूर्त चीज़ जैसे लगते हैं, पर यही वह बीज हैं, जो भविष्य के वृक्ष बनते हैं। जैसे बीज में पूरे पेड़ की संभावना छिपी होती है, वैसे ही हर सकारात्मक विचार में सम्भावनाओं की एक नई दुनिया छिपी होती है।
हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बनने लगते हैं। हमारे विचार हमारे दृष्टिकोण को तय करते हैं, और दृष्टिकोण हमारे कर्मों को। जब एक मनुष्य खुद पर विश्वास करता है, अपनी सोच को ऊँचा रखता है, तो दुनिया की कोई भी दीवार उसे रोक नहीं सकती।
इस लेख या कहानी में हम एक ऐसे ही छोटे से गाँव के लड़के की यात्रा देखेंगे, जिसने ना तो बड़ी लैब देखी, ना ही महंगे स्कूल, लेकिन फिर भी अपने विचारों की शक्ति से वह एक ऐसे मुकाम तक पहुँचा, जो हर किसी के लिए प्रेरणा है।
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क्योकी असली ताकत बाहरी साधनों में नहीं—आत्मा की गहराई में बसे विचारों में होती है।
आइये चलते हैं कहानी पर....
कहानी: सोच का चमत्कार
गाँव के एक कोने में, मिट्टी से सना एक नन्हा सा लड़का बैठा रहता था—आसमान को ताकता हुआ, आँखों में सपने लिए। उसका नाम था आरव।
आरव का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। उसके पिता दिन-भर खेतों में पसीना बहाते, और माँ घर के छोटे-मोटे काम संभालती। पैसे तो कम थे, लेकिन आरव की सोच... वो किसी राजा से कम न थी।
जब दूसरे बच्चे खेल-कूद में मस्त रहते, आरव पुराने रेडियो के पुर्जे खोलकर देखता—“ये काम कैसे करता है?” वो टूटी-फूटी चीजों को जोड़ने की कोशिश करता, कुछ नया बनाने का ख्वाब संजोता। गाँव वाले हँसते थे—
“देखो जी, ये पगला किसान का बेटा वैज्ञानिक बनेगा!”
पर आरव पर किसी की हँसी का असर नहीं होता। वो रोज़ खुद से कहता—
“मैं कर सकता हूँ... मैं करूँगा।”
एक दिन गाँव के स्कूल में एक विज्ञान प्रदर्शनी की घोषणा हुई। सभी बच्चे उत्साहित थे, पर आरव के पास ना पैसा था, ना सामान। फिर भी उसने हार नहीं मानी। पुराने कबाड़ से उसने एक छोटा सा वॉटर प्यूरीफायर बनाया—टूटी बोतल, कुछ पत्थर, रेत, और पुरानी बैटरी से चलने वाला मॉडल।
प्रदर्शनी के दिन, कुछ बच्चे हँसे, कुछ ने अनदेखा किया। लेकिन जब जजों ने आरव का मॉडल देखा, तो रुक गए।
उन्होंने पूछा, “ये तुमने खुद बनाया?”
आरव ने सिर झुकाकर कहा, “हाँ, अपने तरीके से सोचा और बना दिया।”
जज मुस्कराए—“तुम्हारी सोच ही तुम्हारी असली ताकत है।”
आरव का मॉडल पहले नंबर पर आया। वहीं से उसकी नई उड़ान शुरू हुई। स्कॉलरशिप मिली, शहर के बड़े स्कूल में दाखिला हुआ, फिर कॉलेज... और एक दिन वही आरव देश के एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक के रूप में जाना गया।
वर्षों बाद, एक इंटरव्यू में जब उससे पूछा गया,
“आरव, सफलता का राज़ क्या है?”
वो मुस्कराया और बोला—
“मैंने कभी हालात को दोष नहीं दिया... मैंने बस अपनी सोच को मजबूत किया। सोच बदलो, तो जीवन खुद बदल जाता है।”
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