यह काफी गूढ़ प्रश्न हैं और दार्शनिक भी है। इसका उत्तर हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है: तो चले हम इसके दृष्टिकोण देखते हैं।
1. वैज्ञानिक दृष्टिकोण: "हम समय में हैं"
भौतिक विज्ञान (Physics) के अनुसार, ब्रह्मांड में चार मुख्य आयाम होते हैं — तीन स्थानिक (Space) और एक काल (Time)। इन्हें मिलाकर "स्पेस-टाइम" कहा जाता है। हम, हमारे ग्रह, तारे, आकाशगंगाएँ — सब इस स्पेस-टाइम में मौजूद हैं।
उदाहरण:
हमारा जन्म एक निश्चित समय पर हुआ, हम एक उम्र के साथ बड़े होते हैं, और आगे जाकर मरते हैं — ये सब समय के साथ घटती घटनाएँ हैं।
इस दृष्टिकोण से समय एक ऐसा "फ्रेमवर्क" है जिसमें जीवन घटित होता है। जैसे पानी में मछली रहती है, वैसे ही हम समय में रहते हैं।
2. आध्यात्मिक या दार्शनिक दृष्टिकोण: "समय हम में है"
यह दृष्टिकोण यह कहता है कि समय का अनुभव केवल हमारी चेतना (Consciousness) में होता है। अगर चेतना न हो, तो समय भी अप्रासंगिक हो जाता है।
उदाहरण:
जब हम ध्यान (Meditation) करते हैं, तो समय का बोध मिट जाता है। कई बार हम कहते हैं, "समय कब निकल गया पता ही नहीं चला।" नींद में भी हम समय खो देते हैं।
दर्शन यह कहता है कि "वर्तमान क्षण" (Now) ही वास्तविक है। अतीत केवल स्मृति है, और भविष्य केवल कल्पना। हम समय को अपने मन के माध्यम से अनुभव करते हैं — इसलिए कहा जाता है कि समय हमारे भीतर है।
Read this..
3. एक और दृष्टिकोण: समय और मन का संबंध
मन समय के बिना नहीं रह सकता — यह या तो अतीत में सोचता है या भविष्य की चिंता करता है। लेकिन जब मन पूरी तरह से वर्तमान में आ जाता है, तो समय समाप्त हो जाता है।
ओशो जैसे संत कहते हैं: "समय केवल मन की चाल है। सत्य केवल इस क्षण में है।
इसे एक कहानी के रूप में समझते है:
कहानी: "साधु और समय"
किसी पुराने समय की बात है। एक राजा था जो समय को समझना चाहता था। उसने अपने राज्य के सबसे ज्ञानी साधु को बुलाया और पूछा:
"गुरुदेव, क्या मैं समय में हूँ या समय मुझमें है?"
साधु मुस्कराए और बोले,
"राजन, चलो एक यात्रा पर चलते हैं।"
वे राजा को एक गुफा में ले गए, और कहा,
"कुछ पल ध्यान लगाओ।"
राजा आँखें बंद करता है। उसे कोई ध्वनि नहीं आती, कोई हलचल नहीं। ध्यान गहरा होता है। उसे लगता है जैसे समय थम गया हो।
कुछ क्षण बाद साधु बोले,
"अब बताओ, वहाँ समय था?"
राजा बोला,
"नहीं गुरुदेव, वहाँ कुछ नहीं था… न भूत, न भविष्य… बस शांति।"
साधु हँस पड़े,
"वही तो, जब तू अपने में होता है, तो समय नहीं होता।
लेकिन जब तू बाहर की दुनिया में होता है, तब तू समय में होता है।
इसलिए याद रखो —
बाहर जाओ, तो समय में हो।
अंदर आओ, तो समय तुम में है।"
"समय कौन?"
समय से पूछा मैंने,
"तू मुझमें है या मैं तुझमें?"
वो मुस्कराया, बोला धीरे,
"तेरी सोच में हूँ मैं, हर क्षण में।"
जब तू भूत में खो जाता है,
मैं याद बनकर बहता हूँ।
भविष्य की चिंता में,
मैं सपना बनकर कहता हूँ।
जब तू अभी में रहता है,
मैं कहीं नहीं रहता हूँ।
तेरे मन से बंधा हूँ,
तेरे बिना मैं व्यर्थ हूँ।
मैं नदी नहीं, जो बहती हो,
मैं वो बहाव हूँ, जो तू महसूस करता है।
तू कहे तो मैं ठहर जाऊँ,
तू चाह ले, तो मिट भी जाऊँ।