मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

Humari asli shakti




"ज़िंदगी हर किसी को आज़माती है…


कभी हालात तोड़ते हैं, कभी लोग हिम्मत तोड़ते हैं।

लेकिन कुछ लोग होते हैं — जो ना टूटते हैं, ना झुकते हैं।

क्योंकि उनकी ताक़त किसी बाहरी चीज़ में नहीं,

बल्कि उनके भीतर जल रही उस आग में होती है

जो कहती है —

‘कोई भी राह मुश्किल नहीं, जब तक मैं खुद हार नहीं मानता।’

यही आग, यही जज़्बा… हमारी असली शक्ति है।"


पढीये:


        "हमारी असली शक्ति"

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ताक़त वो नहीं जो मांसपेशियों में दिखती है,

ताक़त वो है जो अंदर से उठती है —

हर बार टूटकर फिर से जुड़ने की,

हर बार गिरकर फिर से उठने की।


असली शक्ति उस पल में जागती है,

जब सब कुछ खो जाने के बाद भी

हम कहते हैं —

"मैं फिर से शुरू करूंगा!"


ये शक्ति है आपके आत्म-विश्वास में,

जब दुनिया कहती है "तू नहीं कर सकता",

और आप मुस्कराकर कहते हैं —

"देख लेना, मैं कर के दिखाऊंगा!"


ये शक्ति है आपके धैर्य में,

जो समय को मात देना जानता है।


ये शक्ति है सीखने की ललक में,

जो हर हार को सबक में बदल देती है।


ये शक्ति है उस आग में,

जो कहती है —

"मैं अपने कल से बेहतर बनूंगा, हर हाल में!"


याद रखो,

तुम्हारी असली शक्ति तुम्हारे बाहर नहीं,

तुम्हारे भीतर है।

उसे पहचानो… अपनाओ… और दुनिया को दिखा दो —

कि तुम अजेय हो।


निष्कर्ष:


हमारी असली शक्ति हमारे भीतर छिपी "संभावनाओं" में है। जितना हम खुद को समझते हैं, स्वीकार करते हैं, और रोज़ खुद को थोड़ा बेहतर बनाते हैं — उतनी ही हमारी शक्ति बढ़ती जाती है।

शनिवार, 19 अप्रैल 2025

विचारों की शक्ति: एक प्रेरणादायक हिंदी कहानी जो सोच बदल दे



  मनुष्य के जीवन में जो सबसे अद्भुत और चमत्कारी शक्ति है, वह है—उसके विचार। विचार किसी अमूर्त चीज़ जैसे लगते हैं, पर यही वह बीज हैं, जो भविष्य के वृक्ष बनते हैं। जैसे बीज में पूरे पेड़ की संभावना छिपी होती है, वैसे ही हर सकारात्मक विचार में सम्भावनाओं की एक नई दुनिया छिपी होती है।


  हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बनने लगते हैं। हमारे विचार हमारे दृष्टिकोण को तय करते हैं, और दृष्टिकोण हमारे कर्मों को। जब एक मनुष्य खुद पर विश्वास करता है, अपनी सोच को ऊँचा रखता है, तो दुनिया की कोई भी दीवार उसे रोक नहीं सकती।


  इस लेख या कहानी में हम एक ऐसे ही छोटे से गाँव के लड़के की यात्रा देखेंगे, जिसने ना तो बड़ी लैब देखी, ना ही महंगे स्कूल, लेकिन फिर भी अपने विचारों की शक्ति से वह एक ऐसे मुकाम तक पहुँचा, जो हर किसी के लिए प्रेरणा है। 

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क्योकी असली ताकत बाहरी साधनों में नहीं—आत्मा की गहराई में बसे विचारों में होती है।


आइये चलते हैं कहानी पर....


        कहानी: सोच का चमत्कार


गाँव के एक कोने में, मिट्टी से सना एक नन्हा सा लड़का बैठा रहता था—आसमान को ताकता हुआ, आँखों में सपने लिए। उसका नाम था आरव।


आरव का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। उसके पिता दिन-भर खेतों में पसीना बहाते, और माँ घर के छोटे-मोटे काम संभालती। पैसे तो कम थे, लेकिन आरव की सोच... वो किसी राजा से कम न थी।


जब दूसरे बच्चे खेल-कूद में मस्त रहते, आरव पुराने रेडियो के पुर्जे खोलकर देखता—“ये काम कैसे करता है?” वो टूटी-फूटी चीजों को जोड़ने की कोशिश करता, कुछ नया बनाने का ख्वाब संजोता। गाँव वाले हँसते थे—

“देखो जी, ये पगला किसान का बेटा वैज्ञानिक बनेगा!”


पर आरव पर किसी की हँसी का असर नहीं होता। वो रोज़ खुद से कहता—

“मैं कर सकता हूँ... मैं करूँगा।”


एक दिन गाँव के स्कूल में एक विज्ञान प्रदर्शनी की घोषणा हुई। सभी बच्चे उत्साहित थे, पर आरव के पास ना पैसा था, ना सामान। फिर भी उसने हार नहीं मानी। पुराने कबाड़ से उसने एक छोटा सा वॉटर प्यूरीफायर बनाया—टूटी बोतल, कुछ पत्थर, रेत, और पुरानी बैटरी से चलने वाला मॉडल।


प्रदर्शनी के दिन, कुछ बच्चे हँसे, कुछ ने अनदेखा किया। लेकिन जब जजों ने आरव का मॉडल देखा, तो रुक गए।

उन्होंने पूछा, “ये तुमने खुद बनाया?”

आरव ने सिर झुकाकर कहा, “हाँ, अपने तरीके से सोचा और बना दिया।”

जज मुस्कराए—“तुम्हारी सोच ही तुम्हारी असली ताकत है।”


आरव का मॉडल पहले नंबर पर आया। वहीं से उसकी नई उड़ान शुरू हुई। स्कॉलरशिप मिली, शहर के बड़े स्कूल में दाखिला हुआ, फिर कॉलेज... और एक दिन वही आरव देश के एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक के रूप में जाना गया।


वर्षों बाद, एक इंटरव्यू में जब उससे पूछा गया,

“आरव, सफलता का राज़ क्या है?”

वो मुस्कराया और बोला—

“मैंने कभी हालात को दोष नहीं दिया... मैंने बस अपनी सोच को मजबूत किया। सोच बदलो, तो जीवन खुद बदल जाता है।”

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मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

Chetna ki shakti : atma-jagruti aur vastavik samarthya ki khoj

 


 मनुष्य को यदि किसी एक विशेषता के कारण प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कृति कहा जाता है, तो वह है उसकी चेतना। यह वह दिव्य गुण है जो मनुष्य को सिर्फ एक जैविक प्राणी नहीं, बल्कि एक जागरूक, चिंतनशील और आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर आत्मा बनाता है। चेतना केवल शरीर की क्रियाओं को संचालित करने वाला मस्तिष्क नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक गहराई और शक्ति रखने वाली ऊर्जा है। यही चेतना हमारी वास्तविक शक्ति है।


चेतना क्या है?

चेतना का अर्थ है जागरूकता—स्वयं के प्रति, अपने विचारों, भावनाओं, कर्मों और अपने अस्तित्व के प्रति। यह वही शक्ति है जो हमें यह समझने में सक्षम बनाती है कि हम कौन हैं, क्यों हैं,


और हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है।


चेतना और निर्णय की क्षमता

जब कोई व्यक्ति किसी कठिन परिस्थिति में भी संयम बनाए रखता है, विवेक से निर्णय लेता है, तो वह चेतना के उच्च स्तर का प्रमाण है। बिना चेतना के, जीवन केवल एक प्रतिक्रिया बनकर रह जाता है। परंतु जब हम चेतन रहते हैं, तो हम प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि जवाबदेही से काम करते हैं।


चेतना: विकास की कुंजी

व्यक्तिगत, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास में चेतना की भूमिका केंद्रीय है। एक जागरूक समाज ही समृद्ध और शांतिपूर्ण समाज की नींव रख सकता है। और एक जागरूक आत्मा ही आत्मज्ञान की ओर बढ़ सकती है।

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विज्ञान और अध्यात्म दोनों में स्वीकार्य

जहां विज्ञान चेतना को मस्तिष्क की एक जटिल प्रक्रिया मानता है, वहीं अध्यात्म इसे आत्मा की अनुभूति कहता है। पर दोनों इस बात पर सहमत हैं कि चेतना का अस्तित्व वास्तविक और प्रभावशाली है। यही वह शक्ति है जो हमें मशीनों और अन्य प्राणियों से अलग बनाती है।


चेतना को जागृत कैसे करें?


ध्यान और साधना: प्रतिदिन कुछ समय स्वयं से जुड़ने में बिताएं।


स्वस्थ जीवनशैली: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें।


विवेक से कार्य करें: हर निर्णय से पहले विचार करें – क्या यह सही है?


सकारात्मकता अपनाएं: विचारों की गुणवत्ता ही चेतना की गहराई तय करती है।



निष्कर्ष

चेतना कोई बाहरी शक्ति नहीं, यह हमारे भीतर है — बस उसे पहचानने, जगाने और विकसित करने की आवश्यकता है। यही वह शक्ति है जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, और भ्रम से सत्य की ओर ले जाती है। वास्तव में, चेतना ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है, क्योंकि यही हमें पूर्ण मनुष्य बनाती है।

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शनिवार, 12 अप्रैल 2025

मै कर रहा हू नहीं मैं दे रहा हू--- सेवा की सच्ची भावना को समझे







हमारे जीवन में बहुत से कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें हम बड़े गर्व से कहते हैं – “मैंने किया”, “मैं कर रहा हूँ”, “ये मेरे कारण संभव हुआ”। यह सोचने का तरीका सामान्य है, लेकिन अगर हम ज़रा गहराई से सोचें, तो पाएंगे कि इसके पीछे कहीं न कहीं अहं छिपा होता है। वहीं अगर यही कार्य हम इस भाव से करें कि “मैं कुछ नहीं कर रहा, मैं तो बस दे रहा हूँ, जो मुझे ऊपरवाले ने दिया है, वही आगे बढ़ा रहा हूँ”, तो हमारे कर्मों का स्वरूप ही बदल जाता है।


आध्यात्मिक दृष्टिकोण से:


आध्यात्मिकता में, कर्तापन (मैं कर रहा हूँ) को अहंकार का बीज माना गया है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं:


> "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन"

(कर्म करने में तुम्हारा अधिकार है, फल में नहीं)




यहाँ स्पष्ट रूप से समझाया गया है कि हम सिर्फ कर्म के माध्यम हैं, कर्ता नहीं। जब हम यह मानते हैं कि “मैं दे रहा हूँ”, तो हम खुद को उस ईश्वर का एक साधन मानते हैं, जो इस संसार में प्रेम, सेवा और सहयोग को फैलाने के लिए हमें चुनता है।


सामाजिक दृष्टिकोण से:


जब हम किसी की मदद करते हैं, दान करते हैं, या किसी कार्य में योगदान देते हैं, तो अगर हमारी सोच “मैंने किया” वाली हो, तो वह अहसान जैसा बन जाता है। सामने वाले पर एक मानसिक बोझ होता है।

लेकिन अगर हम यह भावना रखें कि “मैं तो सिर्फ दे रहा हूँ, जो मेरे पास है वो सबका है”, तो वह सेवा बन जाती है — निश्छल, निस्वार्थ और सच्ची।

यह भावना क्या बदलती है?


अहंकार घटता है


कर्मों में निष्ठा और आनंद आता है


दूसरों को छोटा समझने की प्रवृत्ति समाप्त होती है


ईश्वर से जुड़ाव महसूस होता है


सामाजिक समरसता और करुणा बढ़ती है



कैसे अपनाएं "मैं दे रहा हूँ" की भावना?


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1. हर कार्य से पहले एक क्षण रुकें और सोचें: "क्या मैं वाकई कर्ता हूँ?"



2. अपने संसाधनों को दान न समझें, साझा करें।



3. प्राप्ति नहीं, उपयोगिता पर ध्यान दें।



4. धन, समय, ज्ञान – जो भी है, उसका प्रवाह बनाए रखें।





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निष्कर्ष:

जीवन में अगर हम “मैं कर रहा हूँ” के बजाय “मैं दे रहा हूँ” की सोच रख पाएं, तो हमारे कर्म भी पूजा बन जाएंगे और जीवन, एक साधना। यही वह दृष्टिकोण है जो व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक ऊँचाइयों तक ले जाता है, बल्कि समाज को भी प्रेम, शांति और सेवा का मार्ग दिखाता है।





मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

Samay me hum hai ya hum me samay hai



 यह काफी गूढ़ प्रश्न हैं और दार्शनिक भी है। इसका उत्तर हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है: तो चले हम इसके दृष्टिकोण देखते हैं।



1. वैज्ञानिक दृष्टिकोण: "हम समय में हैं"

भौतिक विज्ञान (Physics) के अनुसार, ब्रह्मांड में चार मुख्य आयाम होते हैं — तीन स्थानिक (Space) और एक काल (Time)। इन्हें मिलाकर "स्पेस-टाइम" कहा जाता है। हम, हमारे ग्रह, तारे, आकाशगंगाएँ — सब इस स्पेस-टाइम में मौजूद हैं।

उदाहरण:

हमारा जन्म एक निश्चित समय पर हुआ, हम एक उम्र के साथ बड़े होते हैं, और आगे जाकर मरते हैं — ये सब समय के साथ घटती घटनाएँ हैं।

इस दृष्टिकोण से समय एक ऐसा "फ्रेमवर्क" है जिसमें जीवन घटित होता है। जैसे पानी में मछली रहती है, वैसे ही हम समय में रहते हैं।


2. आध्यात्मिक या दार्शनिक दृष्टिकोण: "समय हम में है"

यह दृष्टिकोण यह कहता है कि समय का अनुभव केवल हमारी चेतना (Consciousness) में होता है। अगर चेतना न हो, तो समय भी अप्रासंगिक हो जाता है।

उदाहरण:

जब हम ध्यान (Meditation) करते हैं, तो समय का बोध मिट जाता है। कई बार हम कहते हैं, "समय कब निकल गया पता ही नहीं चला।" नींद में भी हम समय खो देते हैं।


दर्शन यह कहता है कि "वर्तमान क्षण" (Now) ही वास्तविक है। अतीत केवल स्मृति है, और भविष्य केवल कल्पना। हम समय को अपने मन के माध्यम से अनुभव करते हैं — इसलिए कहा जाता है कि समय हमारे भीतर है। 

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3. एक और दृष्टिकोण:  समय और मन का संबंध

मन समय के बिना नहीं रह सकता — यह या तो अतीत में सोचता है या भविष्य की चिंता करता है। लेकिन जब मन पूरी तरह से वर्तमान में आ जाता है, तो समय समाप्त हो जाता है।


ओशो जैसे संत कहते हैं:  "समय केवल मन की चाल है। सत्य केवल इस क्षण में है।


इसे एक कहानी के रूप में समझते है:


कहानी: "साधु और समय"


किसी पुराने समय की बात है। एक राजा था जो समय को समझना चाहता था। उसने अपने राज्य के सबसे ज्ञानी साधु को बुलाया और पूछा:


"गुरुदेव, क्या मैं समय में हूँ या समय मुझमें है?"


साधु मुस्कराए और बोले,

"राजन, चलो एक यात्रा पर चलते हैं।"

वे राजा को एक गुफा में ले गए, और कहा,

"कुछ पल ध्यान लगाओ।"


राजा आँखें बंद करता है। उसे कोई ध्वनि नहीं आती, कोई हलचल नहीं। ध्यान गहरा होता है। उसे लगता है जैसे समय थम गया हो।


कुछ क्षण बाद साधु बोले,

"अब बताओ, वहाँ समय था?"

राजा बोला,

"नहीं गुरुदेव, वहाँ कुछ नहीं था… न भूत, न भविष्य… बस शांति।"


साधु हँस पड़े,

"वही तो, जब तू अपने में होता है, तो समय नहीं होता।

लेकिन जब तू बाहर की दुनिया में होता है, तब तू समय में होता है।

इसलिए याद रखो —

बाहर जाओ, तो समय में हो।

अंदर आओ, तो समय तुम में है।"


                    "समय कौन?"

समय से पूछा मैंने,

"तू मुझमें है या मैं तुझमें?"

वो मुस्कराया, बोला धीरे,

"तेरी सोच में हूँ मैं, हर क्षण में।"

जब तू भूत में खो जाता है,

मैं याद बनकर बहता हूँ।

भविष्य की चिंता में,

मैं सपना बनकर कहता हूँ।

जब तू अभी में रहता है,

मैं कहीं नहीं रहता हूँ।

तेरे मन से बंधा हूँ,

तेरे बिना मैं व्यर्थ हूँ।

मैं नदी नहीं, जो बहती हो,

मैं वो बहाव हूँ, जो तू महसूस करता है।

तू कहे तो मैं ठहर जाऊँ,

तू चाह ले, तो मिट भी जाऊँ।

शनिवार, 5 अप्रैल 2025

Kya universe ek bhram hai

 क्यया युनीव्हर्स एक भ्रम हैं यह एक गहरा प्रश्न है जो दर्शन, विज्ञान और आध्यात्म से जुड़ा हुआ है।




वैज्ञानिक दृष्टिकोण

विज्ञान के अनुसार, हमारा ब्रह्मांड एक वास्तविक तत्व है जो लगभग 13.8 अरब वर्ष पहले "बिग बैंग" के माध्यम से उत्पन्न हुआ था। क्वांटम भौतिकी और सापेक्षता (Relativity) जैसे सिद्धांत बताते हैं कि यह ब्रह्मांड कुछ निश्चित नियमों और संबंधों पर आधारित है। हालाँकि, कुछ क्वांटम प्रयोग (जैसे "डबल-स्लिट एक्सपेरिमेंट") यह दिखाते हैं कि वास्तविकता पर्यवेक्षक (observer) पर निर्भर करती है, जो इसे भ्रम जैसा बना सकता है।

दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण

1. अद्वैत वेदांत (हिंदू दर्शन)

इस सिद्धांत के अनुसार, पूरा जगत "माया" है, जो एक भ्रम जैसा है। केवल "ब्रह्म" (परम सत्य) ही वास्तविक है, बाकी सब कुछ मिथ्या (illusory reality) है।



2. बौद्ध दर्शन

बौद्ध दृष्टिकोण के अनुसार, यह संसार क्षणभंगुर (अनित्य) है और सब कुछ "शून्यता" (सून्यता) से उत्पन्न होता है। इसलिए, यह भी एक प्रकार का भ्रम हो सकता है।



3. प्लेटो का "गुफा का रूपक" (Allegory of the Cave)

प्राचीन ग्रीक दार्शनिक प्लेटो ने कहा था कि जो हम देख रहे हैं, वह असली सत्य नहीं है। हम केवल एक "प्रतिबिंब" (projection) देख रहे हैं, जैसे गुफा की दीवार पर पड़ने वाली परछाइयाँ।




तो क्या ब्रह्मांड एक भ्रम है?

यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे किस दृष्टिकोण से देखते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि से ब्रह्मांड वास्तविक प्रतीत होता है, परंतु क्वांटम भौतिकी और चेतना (Consciousness) से जुड़े कुछ विचार इसे भ्रम जैसा दर्शाते हैं।

दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टि से, इसे माया, अनित्य या प्रतिबिंब माना जा सकता है, जो वास्तविकता का केवल एक आभास मात्र हो सकता है।


अंततः, यह प्रश्न हमारी समझ और अनुभूति पर निर्भर करता है।

Humari asli shakti

"ज़िंदगी हर किसी को आज़माती है… कभी हालात तोड़ते हैं, कभी लोग हिम्मत तोड़ते हैं। लेकिन कुछ लोग होते हैं — जो ना टूटते हैं, ना झुकते हैं...